Karz se Mukti ke Upaya
जीवनोपयोगी बातें
वर्ष में एक महाशिवरात्रि आती है और हर महीने में एक मासिक शिवरात्रि आती है। यही मासिक शिवरात्रि यदि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं। मंगलदेव ऋणहर्ता देव हैं। उस दिन संध्या के समय यदि भगवान भोलेनाथ का पूजन करें तो भोलेनाथ की, गुरु की कृपा से हम जल्दी ही कर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इस दैवी सहायता के साथ थोड़ा स्वयं भी पुरुषार्थ करें। पूजा करते समय यह मंत्र बोलें –
वर्ष में एक महाशिवरात्रि आती है और हर महीने में एक मासिक शिवरात्रि आती है। यही मासिक शिवरात्रि यदि मंगलवार के दिन पड़े तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं। मंगलदेव ऋणहर्ता देव हैं। उस दिन संध्या के समय यदि भगवान भोलेनाथ का पूजन करें तो भोलेनाथ की, गुरु की कृपा से हम जल्दी ही कर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इस दैवी सहायता के साथ थोड़ा स्वयं भी पुरुषार्थ करें। पूजा करते समय यह मंत्र बोलें –
मृत्युंजयमहादेव त्राहिमां शरणागतम्।
जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितः कर्मबन्धनः।।
जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितः कर्मबन्धनः।।
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माताएँ बहने रोज स्नान करने के बाद पार्वती माता का स्मरण करते-करते उत्तर दिशा की ओर मुख करके तिलक करें और पार्वती माता को इस मंत्र से वंदन करें – ॐ ह्रीं गौर्यै नमः।
इससे बहनों के सौभाग्य की खूब रक्षा होगी तथा घर में सुख शान्ति और समृद्धि बढ़ेगी।
घर के ईशान कोण में तुलसी रखना शुभ होता है। द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा और रविवार को तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए। बाकी के दिनों में तोड़ें तो ॐ सुप्रभायै नमः, ॐ सुभद्रायै नमः। बोलते हुए तोड़ें, इससे तुलसीपत्र दैवी औषधि का काम करेगा। तुलसी के पौधे को जल देते समय यह मंत्र बोलें-
माताएँ बहने रोज स्नान करने के बाद पार्वती माता का स्मरण करते-करते उत्तर दिशा की ओर मुख करके तिलक करें और पार्वती माता को इस मंत्र से वंदन करें – ॐ ह्रीं गौर्यै नमः।
इससे बहनों के सौभाग्य की खूब रक्षा होगी तथा घर में सुख शान्ति और समृद्धि बढ़ेगी।
घर के ईशान कोण में तुलसी रखना शुभ होता है। द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा और रविवार को तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए। बाकी के दिनों में तोड़ें तो ॐ सुप्रभायै नमः, ॐ सुभद्रायै नमः। बोलते हुए तोड़ें, इससे तुलसीपत्र दैवी औषधि का काम करेगा। तुलसी के पौधे को जल देते समय यह मंत्र बोलें-
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्द्धिनी।
आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसी त्वं नमोऽस्तु ते।।
आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसी त्वं नमोऽस्तु ते।।
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