सर्वाभीष्ट-पूरक सूर्य यन्त्र१॰ अर्क (मदार) दुग्ध, केशर, गोरोचन और अर्क-पत्रों का रस – मिलाकर ‘द्रव्य’ तैयार करे ।
२॰ शुक्ल पक्ष के रविवार को, जब कृत्तिका नक्षत्र हो, तब अर्क (मदार या आक) की लेखनी से, ‘भोज-पत्र’ पर उपर्युक्त द्रव्य से निम्न ‘सूर्य-यन्त्र’ को लिखे ।
३॰ यन्त्र लिखने के बाद अष्ट-गन्ध से यन्त्र को १०८ बार निम्न ‘मन्त्र’ द्वारा धूपित करे – “ॐ ह्रीं हंसः घृणि सूर्याय नमः ।”
४॰ फिर स्वर्ण या ताम्र के ‘ताबीज’ में उक्त ‘यन्त्र’ को रखकर, लाल रेशमी धागे से दाईं भुजा में पहने ।
५॰ इस प्रकार ‘यन्त्र’ धारण करने से सभी कार्य सम्पन्न होते हैं । सुख-सम्पत्ति मिलती है । दुःख-बाधाऐँ दूर होती हैं ।
२॰ शुक्ल पक्ष के रविवार को, जब कृत्तिका नक्षत्र हो, तब अर्क (मदार या आक) की लेखनी से, ‘भोज-पत्र’ पर उपर्युक्त द्रव्य से निम्न ‘सूर्य-यन्त्र’ को लिखे ।
३॰ यन्त्र लिखने के बाद अष्ट-गन्ध से यन्त्र को १०८ बार निम्न ‘मन्त्र’ द्वारा धूपित करे – “ॐ ह्रीं हंसः घृणि सूर्याय नमः ।”
४॰ फिर स्वर्ण या ताम्र के ‘ताबीज’ में उक्त ‘यन्त्र’ को रखकर, लाल रेशमी धागे से दाईं भुजा में पहने ।
५॰ इस प्रकार ‘यन्त्र’ धारण करने से सभी कार्य सम्पन्न होते हैं । सुख-सम्पत्ति मिलती है । दुःख-बाधाऐँ दूर होती हैं ।