श्रीसाबर-शक्ति-पाठ
श्रीसाबर-शक्ति-पाठश्री ‘साबर-शक्ति-पाठ’ के रचियता ‘अनन्त-श्रीविभूषित-श्रीदिव्येश्वर योगिराज’ श्री शक्तिदत्त शिवेन्द्राचार्य नामक कोई महात्मा रहे है। उनके उक्त पाठ की प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी है। पूर्ण श्रद्धा-सहित पाठ करने वाले को सफलता निश्चित रुप से मिलती है, ऐसी मान्यता है।
किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी।
प्रयोग-विधिः-
१॰ लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु
नैऋत्य-मुख बैठकर दो पाठ नित्य करें।
२॰ सन्तान-सुख-प्राप्ति हेतु
पश्चिम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करें।
३॰ शत्रु-बाधा-निवारण हेतु
उत्तर-मुख बैठकर तीन दिन सांय-काल ग्यारह पाठ करें।
४॰ विद्या-प्राप्ति एवं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु
पूर्व-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करें।
५॰ घोर आपत्ति और राज-दण्ड-भय को दूर करने के लिए
मध्य-रात्रि में नौ दिनों तक २१ पाठ करें।
६॰ असाध्य रोग को दूर करने के लिए
सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुक्रवार को २ तथा शनिवार को ९ पाठ करें।
७॰ नौकरी में उन्नति और व्यापार में लाभ पाने के लिए
एक पाठ सुबह तथा दो पाठ रात्रि में एक मास तक करें।
८॰ देवता के साक्षात्कार के लिए
चतुर्दशी के दिन रात्रि में सुगन्धित धूप एवं अखण्ड दीप के सहित १०० पाठ करें।
९॰ स्वप्न में प्रश्नोत्तर, भविष्य जानने के लिए
रात्रि में उत्तर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी रात्रि में स्वप्न में उत्तर मिलेगा।
१०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु
नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें।
पूर्व-पीठिका
।। विनियोग ।।
श्रीसाबर-शक्ति-पाठ का, भुजंग-प्रयात है छन्द ।
भारद्वाज शक्ति ऋषि, श्रीमहा-काली काल प्रचण्ड ।।
ॐ क्रीं काली शरण-बीज, है वायु-तत्त्व प्रधान ।
कालि प्रत्यक्ष भोग-मोक्षदा, निश-दिन धरे जो ध्यान ।।
।। ध्यान ।।
मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी ।
मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।।
गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै ।
निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।।
किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी।
प्रयोग-विधिः-
१॰ लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु
नैऋत्य-मुख बैठकर दो पाठ नित्य करें।
२॰ सन्तान-सुख-प्राप्ति हेतु
पश्चिम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करें।
३॰ शत्रु-बाधा-निवारण हेतु
उत्तर-मुख बैठकर तीन दिन सांय-काल ग्यारह पाठ करें।
४॰ विद्या-प्राप्ति एवं परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु
पूर्व-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करें।
५॰ घोर आपत्ति और राज-दण्ड-भय को दूर करने के लिए
मध्य-रात्रि में नौ दिनों तक २१ पाठ करें।
६॰ असाध्य रोग को दूर करने के लिए
सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुक्रवार को २ तथा शनिवार को ९ पाठ करें।
७॰ नौकरी में उन्नति और व्यापार में लाभ पाने के लिए
एक पाठ सुबह तथा दो पाठ रात्रि में एक मास तक करें।
८॰ देवता के साक्षात्कार के लिए
चतुर्दशी के दिन रात्रि में सुगन्धित धूप एवं अखण्ड दीप के सहित १०० पाठ करें।
९॰ स्वप्न में प्रश्नोत्तर, भविष्य जानने के लिए
रात्रि में उत्तर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी रात्रि में स्वप्न में उत्तर मिलेगा।
१०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु
नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें।
पूर्व-पीठिका
।। विनियोग ।।
श्रीसाबर-शक्ति-पाठ का, भुजंग-प्रयात है छन्द ।
भारद्वाज शक्ति ऋषि, श्रीमहा-काली काल प्रचण्ड ।।
ॐ क्रीं काली शरण-बीज, है वायु-तत्त्व प्रधान ।
कालि प्रत्यक्ष भोग-मोक्षदा, निश-दिन धरे जो ध्यान ।।
।। ध्यान ।।
मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी ।
मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।।
गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै ।
निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।।