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Friday, April 16, 2010

श्रीमहा-लक्ष्मी कमला समर्पणम् ।।

गदा-खड्ग-खेट-खप्पर-नाग-चक्र-शूल-शंख-पात्र हाथों में सोहे ।
जय महिषासुर-मर्दिनि चण्डिके, अष्टादश-भुजे विश्वम्भर-मन मोहे ।।
शाकम्भरी दुर्गा दुर्गमा कहलाती, भक्त-रक्षा हित प्रगट तू हो जाती ।
अमृत-दायिनी श्रीश्यामा सहोदरी, विद्युत्प्रभे तू सर्वार्थ-पूर्ण-करी ।।
श्रीइन्द्राक्षी मणि-द्वीपे राज-रानी, जयति जय त्रिभुवन-विख्यात दानी ।
सर्व-मुद्रा-मयी खेचरी भूचरी, कुलजा कौलनी माधवी चाचरी ।।
अगोचरी हो तुम कुल-कमलिनी, सहस्त्रार-शक्ति अर्द्ध-नारीश्वरी ।
इच्छा-क्रिया-ज्ञान-मूर्ति मातेश्वरी, श्रीविद्या तत्त्व-माता परमेश्वरी ।।
भवानी भग-मालिनी हेम-गर्भा परा, सदसत अद्वैत-जननि ऋतम्भरा ।
अहंकार-प्रकृति-स्व-स्वरुप-यजना, ब्रह्म-जननि वेद-माता गगन-वसना ।।
चतुष्षष्टि-तन्त्रागम-यामला, इनसे भी परे हो तुम चित्-कला ।
मातृका वह्निरन्तर्याग-माया, सिद्ध-सनकादि ने भी न भेद पाया ।।
चक्र-वेध से भी परे है धाम तेरा, नम्र-दिव्य-भावी हृदय में वास तेरा ।
मैं दीन भक्त तुम्हें कैसे मनाऊँ, दे चरण-भक्ति सदा गुण गाऊँ ।।
श्रीविन्ध्येश्वरी अजा वर-वर्णिनी, तैजस-तत्त्व-शयामे तू अति गर्विणी ।
आद्या अम्बिका तू है श्रीसुन्दरी, चन्द्र-भगिनी हेम-वदना किन्नरी ।।
तू ही तू है माँ व्याप्त जग में, सर्वत्र तुमको ही देखता हूँ मग में ।
पाप-पुण्य से परे मैं हूँ तेरा, श्रीजयाम्बे मां ! तू मेरी मैं तेरा ।।
महा-काल के वचन से भूतल पर आया, तु शरीरी मैं हूँ तेरी छाया ।
तेरे ही बल से साबरी छन्द कहता, सर्व-शक्ति-दायी शत्रु-वंश-हन्ता ।।
तीन मास ध्यावे दर्शन पावे, वाद-सम्वाद में सुर-गुरु को हरावे ।
साबरी-शक्ति-पाठ-वशी सुरेशा, सर्व-सिद्धि पावे साक्षी हो महेशा ।।
त्रिवर्ण के ही लिए साबरी यह, म्लेच्छ जो पढ़े तो निर्वश हो वह ।
साबरी अधीन है वीर हनुमान, उठो-उठो सिया-राम की आन ।।
अञ्जनि-सुत सुग्रीव के संगी, करो काम मेरा वीर बजरंगी ।
तीन रात्रि में सिद्ध कर कामा, शपथ तोहे रघुपति की बल-धामा ।।
अष्ट-भैरव रक्षण करे तन का, वीरभद्र विकास करे मन का ।
नृसिंह वीर ! मम नेत्रों में रहना, जहाँ पुकारुँ सम्मोहित करना ।।
सिद्ध साबरी है श्यामा का बाण, रुद्र-पाठ हरे शत्रु का प्राण ।
निशा साबरी श्मशान में गावे, नक्षत्र-पाठ जाग्रत हो जावे ।।
वर्ष एक जो पढ़े तट गंगा, अर्द्ध-रात्रि में होकर असंगा ।
ताके संग रहें भैरव-नाथा, राजा-प्रजा झुकावें माथा ।।
बारा वर्ष रटे साबरी हो ज्ञानी, सदा संग में रहें भवानी ।
हो इच्छा-जीवी यो-गति-ज्ञाना, निष्प्रयास प्राप्त हों सकल विज्ञाना ।।
कहे सिद्धि-राज भक्त सुनो माँ काली ! शाबरी-शक्ति तुम्हीं हो कराली ।
शाबरी-पाठ निन्दा जो करे, होय निर्वश तन कीड़े पड़े ।।
शाक्त-रक्षिणी मम शत्रु-भक्षिणी, श्रीरक्त-कालि ! तव भय-दुःख-हरिणी ।
सिद्धि-भक्त यह चरणों में तेरे, ‘कल्याण करो मम’ बार-बार टेरे ।।
श्री चण्डी समर्पणम् ।।११
।।श्रीसाबर-शक्ति-पाठं सम्पूर्णं, शुभं भुयात्।l



उक्त श्री ‘साबर-शक्ति-पाठ‘ के रचियता ‘अनन्त-श्रीविभूषित-श्रीदिव्येश्वर योगिराज’ श्री शक्तिदत्त शिवेन्द्राचार्य नामक कोई महात्मा रहे है। उनके उक्त पाठ की प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी है। पूर्ण श्रद्धा-सहित पाठ करने वाले को सफलता निश्चित रुप से मिलती है, ऐसी मान्यता है।
किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी।

१०॰ विपरीत ग्रह-दशा और दैवी-विघ्न की निवृत्ति हेतु
नित्य एक पाठ सदा श्रद्धा से करें