तीनों ग्रहों के कारण प्रेम होता है
प्रेम विवाह से संबंधित तीन ग्रह होते हैं। यह तीन ग्रह सूर्य, बुध और शुक्र हैं। इन तीनों ग्रहों के कारण व्यक्ति को प्रेम होता है। अगर यह तीनों ग्रह एक साथ एक ही भाव में स्थित हो तो वह व्यक्ति प्रेम विवाह निश्चित करता है। यदि शुक्र, सूर्य और बुध तीनों ग्रह एक ही क्रम में अलग-अलग भावों में हो तो प्रेम होता है परंतु इनका विवाह नहीं हो पाता।सूर्य, बुध और सूर्य इन ग्रहों में से कोई दो युति करते हो और एक अन्य ग्रह भाव में स्थित हो जाए तो बहुत मुश्किल से प्रेम विवाह होता है।सूर्य, बुध सप्तम स्थान में हो तो अपने से बड़ी उम्र का प्रेमी मिलता है। शुक्र बलवान होने पर कई साथी मिलते हैं परतुं अन्य दो ग्रह सूर्य-बुध के कमजोर होने पर व्यक्ति को अपना प्रेम नहीं मिलता।
क्या करें प्रेम विवाह हेतु?
- अपने साथी का नाम लिखकर एक पीपल का पत्ता रविवार, सोमवार और मंगलवार को शिवजी पर चढाएं। शिव चालीसा का पाठ करें। महाकाली का पूजन मंगलवार के दिन करें। मछली को आटे की गोली खिलाएं। मां पार्वती की आराधना करें। श्रीकृष्ण की पूजा करें।
बिल्व पत्र पर चंदन से (श्रीं) लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें।
मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक
ब्रह्मांड में स्थित नवग्रह मानवीय जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव छोड़ते हैं। जिनके अच्छे या बुरे नतीजे भी मिलते हैं। इन नवग्रहों में एक है मंगल। मंगल को नवग्रहों का सेनापति भी माना गया है।अलग-अलग पौराणिक मान्यताओं में मंगल का जन्म भगवान शिव के रक्त, आंसू या तेज से माना गया है। वहीं मंगल का पालन-पोषण पृथ्वी द्वारा किया गया। यही कारण है कि मंगल को भूमिपुत्र भी कहा जाता है। शिव की कृपा से ही मंगल ग्रह के रूप में आकाश में स्थित हुआ।ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक मंगल क्रूर ग्रह है, किंतु इसका शुभ प्रभाव व्यक्ति का साहस, पराक्रम, ताकत और उदारता को नियत करता है। व्यावहारिक जीवन में विवाह, संतान सुख, यश, कर्ज और रोगों से मुक्ति भी मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव से मिलती है। किंतु मंगल दोष होने पर खून, नेत्र और गले की बीमारियां भी होती है। जीवनसाथी के जीवन पर संकट आता है। वैवाहिक समस्याएं पैदा होती है।
भूमि पुत्र होने से मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक होता है। जिससे इसका नाम भौम हुआ। मंगल को अंगारक, कुजा के नाम से भी जाना जाता है। यह वृष्टि का देवता भी माना जाता है। वहीं मंगल कठिन हालात और संघर्ष में साहस और जूझने की ताकत देने वाला ग्रह भी है। मंगल के ऐसे ही मंगलकारी और कल्याणकारी स्वरूप और स्वभाव को उज़ागर करते 21 नाम बताए गए हैं। जिनका ध्यान जगत के लिए संकटमोचक और मंगलकारी बताया गया है -
- मंगल, भूमिपुत्र ,ऋणहर्ता,धनप्रदा, स्थिरासन, महाकाय, सर्वकामार्थ साधक, लोहित, लोहिताक्ष, सामगानंकृपाकर,धरात्मज, कुजा, भूमिजा,भूमिनंदन ,अंगारक ,भौम,यम,सर्वरोगहारक,वृष्टिकर्त ा, पापहर्ता , सर्वकामफलदाता
प्रेम विवाह से संबंधित तीन ग्रह होते हैं। यह तीन ग्रह सूर्य, बुध और शुक्र हैं। इन तीनों ग्रहों के कारण व्यक्ति को प्रेम होता है। अगर यह तीनों ग्रह एक साथ एक ही भाव में स्थित हो तो वह व्यक्ति प्रेम विवाह निश्चित करता है। यदि शुक्र, सूर्य और बुध तीनों ग्रह एक ही क्रम में अलग-अलग भावों में हो तो प्रेम होता है परंतु इनका विवाह नहीं हो पाता।सूर्य, बुध और सूर्य इन ग्रहों में से कोई दो युति करते हो और एक अन्य ग्रह भाव में स्थित हो जाए तो बहुत मुश्किल से प्रेम विवाह होता है।सूर्य, बुध सप्तम स्थान में हो तो अपने से बड़ी उम्र का प्रेमी मिलता है। शुक्र बलवान होने पर कई साथी मिलते हैं परतुं अन्य दो ग्रह सूर्य-बुध के कमजोर होने पर व्यक्ति को अपना प्रेम नहीं मिलता।
क्या करें प्रेम विवाह हेतु?
- अपने साथी का नाम लिखकर एक पीपल का पत्ता रविवार, सोमवार और मंगलवार को शिवजी पर चढाएं। शिव चालीसा का पाठ करें। महाकाली का पूजन मंगलवार के दिन करें। मछली को आटे की गोली खिलाएं। मां पार्वती की आराधना करें। श्रीकृष्ण की पूजा करें।
बिल्व पत्र पर चंदन से (श्रीं) लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें।
मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक
ब्रह्मांड में स्थित नवग्रह मानवीय जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव छोड़ते हैं। जिनके अच्छे या बुरे नतीजे भी मिलते हैं। इन नवग्रहों में एक है मंगल। मंगल को नवग्रहों का सेनापति भी माना गया है।अलग-अलग पौराणिक मान्यताओं में मंगल का जन्म भगवान शिव के रक्त, आंसू या तेज से माना गया है। वहीं मंगल का पालन-पोषण पृथ्वी द्वारा किया गया। यही कारण है कि मंगल को भूमिपुत्र भी कहा जाता है। शिव की कृपा से ही मंगल ग्रह के रूप में आकाश में स्थित हुआ।ज्योतिष विज्ञान के मुताबिक मंगल क्रूर ग्रह है, किंतु इसका शुभ प्रभाव व्यक्ति का साहस, पराक्रम, ताकत और उदारता को नियत करता है। व्यावहारिक जीवन में विवाह, संतान सुख, यश, कर्ज और रोगों से मुक्ति भी मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव से मिलती है। किंतु मंगल दोष होने पर खून, नेत्र और गले की बीमारियां भी होती है। जीवनसाथी के जीवन पर संकट आता है। वैवाहिक समस्याएं पैदा होती है।
भूमि पुत्र होने से मंगल भूमि और भार्या या पत्नी का रक्षक होता है। जिससे इसका नाम भौम हुआ। मंगल को अंगारक, कुजा के नाम से भी जाना जाता है। यह वृष्टि का देवता भी माना जाता है। वहीं मंगल कठिन हालात और संघर्ष में साहस और जूझने की ताकत देने वाला ग्रह भी है। मंगल के ऐसे ही मंगलकारी और कल्याणकारी स्वरूप और स्वभाव को उज़ागर करते 21 नाम बताए गए हैं। जिनका ध्यान जगत के लिए संकटमोचक और मंगलकारी बताया गया है -
- मंगल, भूमिपुत्र ,ऋणहर्ता,धनप्रदा, स्थिरासन, महाकाय, सर्वकामार्थ साधक, लोहित, लोहिताक्ष, सामगानंकृपाकर,धरात्मज, कुजा, भूमिजा,भूमिनंदन ,अंगारक ,भौम,यम,सर्वरोगहारक,वृष्टिकर्त